Monday, October 22, 2018

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POLITICS ON NAME CHANGE: OLD Vs NEW NAME

OLD NAME Vs NEW NAME OF CITY



उत्तर प्रदेश  की सत्ता में भाजपा सरकार के आने के बाद नाम बदलने का सिलसिला जारी है। नया नाम बदलने को लेकर अब इलाहबाद चर्चा में है, क्योंकि सरकार ने इसका  नाम बदलकर "प्रयागराज" कर दिया है। जिस पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल में अपनी मुहर लगा दी है। 444 साल बाद एक बार फिर प्रयागराज को अपना पुराना नाम मिल गया है।  इस मौके पर योगी आदित्यनाथ ने बताया की बैठक में बहुत से लोगो ने प्रयागराज नाम रखे जाने का समर्थन कर रहे थे।







old city name

 

 लेकिन इस फेहरिस्त में इलाहबाद पहला शहर नहीं है , इससे पहले भी कई शहरो को नए  नाम दिए गए है। हालांकि नाम बदले जाने के बावजूद शहरों को पुराने नाम से ही पहचाना जाता है। कारण है इसका जुबान पर चढ़ा पुराना नाम। लेकिन इस मामले को लेकर जितनी राजनीति हो रही है ,उतनी राजनीति पहले किसी शहर या स्टेशन के नाम बदलने को लेकर  नहीं हुयी। इससे पहले जितने शहरों के नाम वहाँ की स्थानीय सरकारों ने या कांग्रेस सरकार ने यह फैसला लिया था लेकिन इतना हंगामा कभी नहीं हुआ था। लेकिन इलाहबाद का नाम प्रयागराज करने पर इतना हंगामा क्यों बरपा है यह सोच का विषय है। 
नाम बदलने का यह चलन नया नहीं है, क्योंकि लंबे समय से शहरों को नए नाम मिलते रहे हैं। यहां हम आपको उन्हीं शहरों के बारे में बताएंगे, जिनके पुराने नाम कुछ और ही थे। ठीक वैसे जैसे प्रयागराज कभी इलाहाबाद था और गुरुग्राम… गुड़गांव।

आजादी के तुरंत बाद से ही भारतीय नामों के लिए शहरों के नाम बदले जाने का सिलसिला शुरू हो गया था। हम आपको भारत के उन शहरों के बारे में बता रहे हैं। जिनके नाम ब्रिटिश राज के दौरान अंग्रेजों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से बदले थे और देश के आजाद होने के बाद से भारतीय नामों के लिए फिर से इन शहरों के नामों को बदला गया।

बड़ौदा से वडोदरा

vadodara


















1974 में कांग्रेस की सरकार ने गुजरात के बड़ौदा का नाम बदलकर वडोदरा कर दिया। वडोदरा का नाम वटपत्रक या बरगद के पत्ते के नाम पर पड़ा है। कुछ लोग इसका नाम बरगद के बीच यानि वटोदर से पड़ा भी मानते हैं।

त्रिवेंद्रम से तिरुवनन्तपुरम

trivendrum

हालांकि ज्यादातर लोग इसे आज भी त्रिवेंद्रम ही कहते हैं लेकिन केरल की राजधानी का नाम 1991 से ही तिरुवनन्तपुरम हो चुका है। इसका श्रेय भी कांग्रेस सरकार को ही जाता है। इसका नाम भगवान अनंत के नाम पर रखा गया है। जो कि पद्मनाभमस्वामी मंदिर के प्रमुख देवता हैं।

बॉम्बे से मुंबई

mumbai station

मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है और लोग कहते हैं कि बॉम्बे से आज भी जो फील आता है, मुंबई से नहीं आता। मुंबई शहर है, जबकि बॉम्बे एक भावना है। मुंबई का नाम मुंबा देवी के नाम पर रखा गया है। मुंबई में जो आखिरी का आई है, उसका मतलब होता है मां। यानि मुंबई का मतलब हुआ ‘मुंबा मां’। बॉम्बे का नाम 1995 में बदलकर मुंबई किया गया था। यह शिवसेना के द्वारा किया गया था।

मद्रास से चेन्नई

chennai

सारे बदले जाने वाले नाम ज्यादातर मिलते-जुलते होते हैं लेकिन सबसे ज्यादा अंतर चेन्नई और मद्रास में दिखता है। डीएमके सरकार ने इसका नाम भी 1996 में ही बदला। अंग्रेजों ने मद्रास का नाम मद्रासपट्टिनम से बदलकर मद्रास रखा था। आज भी चेन्नई में इस नाम का मछुआरों का एक कस्बा है। कुछ लोगों का कहना है कि इस शहर का नाम तेलुगु राजा दमारला चेनप्पा नायकुडु के नाम पर रखा गया है। जबकि एक मत यह भी है कि यह नाम चेन्ना केसवा पेरुमत मंदिर से आया है।

कलकत्ता से कोलकाता
howrah bridge, kolkata

भारत के सांस्कृतिक शहरों में से एक कलकत्ता ने 2001 में फिर से अपना बंगाली नाम कोलकाता अपना लिया था। तब वहां की वामपंथी सरकार ने इस शहर का नाम बदल दिया। यह कोलिकाता का छोटा रूप है। यह यहां स्थापित एक ऐसा गांव था, जो ब्रिटिशों के इस पर कब्जे से पहले यहां हुआ करता था। इसके अलावा कलकत्ता जिन दो गांवों को मिलाकर बना है, उनके नाम थे सुतानुती और गोविंदपुर।

कॉनपोर से कानपुर

गंगा के किनारे बसे इस औद्योगिक शहर कॉनपोर का नाम आजादी के एक साल के अंदर ही बदल दिया गया था। तब कांग्रेस की ही सरकार थी जिसने 1948 में इस काम को अंजाम दिया। इस शहर के नाम को लेकर दो मान्यताएं हैं। पहली के हिसाब से शहर का नाम महाभारत के कर्ण के नाम पर कर्णपुर रखा गया था। जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार पास के ही एक कस्बे मकनपुर के नाम पर इसका नाम रखा गया था।

पूना से पुणे

बॉम्बे का चचेरा शहर कहा जाने वाला पुणे 1977 तक पूना नाम से जाना जाता था। शब्दश: इसका मतलब खूबियों का शहर होता है। वैसे पुणे को नाम पुण्य गिरि पहाड़ियों से मिला है।

सिमला से शिमला

शिमला फिलहाल हिमाचल प्रदेश की राजधानी है लेकिन ब्रिटिश राज के दौरान यह गर्मियों की राजधानी हुआ करती थी। देवी श्यामला देवी के नाम पर इस शहर का नाम पड़ा है। यह देवी काली का एक अवतार मानी जाती हैं। आजादी के बाद ही सिमला का नाम बदलकर शिमला कर दिया गया था। तब सरकार किसकी थी यह किसी से छुपी नहीं है।

बनारस से वाराणसी

इस पवित्र माने जाने वाले शहर को काशी के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन आजादी के बाद बनारस ने 1956 में अपना भारतीय नाम वाराणसी पाया। वरुणा नदी और अस्सी घाट के बीच बसे होने के चलते इस शहर को वाराणसी कहा जाता है।

वाल्टेयर से विशाखापट्टनम

आंध्रप्रदेश का विशाखापट्टनम जिसे अक्सर विजाग भी कहा जाता है, आजादी के बाद ही इसने अपने अंग्रेज नाम वाल्टेयर छोड़ दिया था। लेकिन इसे छोड़कर वह विजागापट्टनम हो गया था। जिसके बाद 1987 में यह विशाखापट्टनम हो गया। यह भारत के पूर्वी तट पर चेन्नई और कोलकाता के बाद तीसरा सबसे बड़ा शहर है। आंध्र वंश के शासक भगवान विसाकेश्वर के नाम पर इसका नाम रखा गया था।

मैसूर से मैसुरू

अपने महलों और मैसूर पार्क के लिए प्रसिद्ध इस शहर का नाम महिषासुर या महिशुरू से मिला है। हिंदू आख्यानों के अनुसार महिषासुर का महल यहीं था, जिसे बाद में देवी चामुंडेश्वरी ने मार दिया। 2014 में कांग्रेस की सरकार ने इस शहर को यह नया नाम दिया।

बंगलौर से बेंगलुरु

बेंगलुरु में बेगुर नाम की जगह पर मिले एक शिलालेख में वहां पर पश्चिमी गंग शासकों का इलाका बताया गया है। यह शिलालेख 890 के आस-पास का है। 1004 तक यहां पर गंग शासकों ने शासन किया। तब तक इसे बेंगावल-उरू कहा जाने लगा था। जिसका मतलब होता था, रक्षकों का शहर। 2014 में कांग्रेस सरकार के नाम इस शहर का भी नया नामकरण करने का श्रेय जाता है।

गुड़गांव से गुरुग्राम

महाभारत में पांडवों और कौरवों को युद्धविद्या की सीख देने वाले गुरु द्रोणाचार्य का गांव गुरुग्राम यहीं पर है। इसी स्थान पर अर्जुन ने चिड़िया की आंख में निशाना लगाया था। और इसी स्थान पर महाभारत की पूर्व तैयारी भी हुई थी। 2016 में भाजपा सरकार के समय इस शहर का नाम बदला गया। ठीक इसी समय गुरुग्राम से सटे हरियाणा के एक और जिले मेवात का नाम बदलकर भी नूंह कर दिया गया। नूंह को भी मेवात का ऐतिहासिक नाम बताया जाता है।

वहीं कांग्रेस ने 2014 में विजयपुरा का नाम बदलकर बीजापुर करने का फैसला ले लिया तो इसी साल कांग्रेस की सरकार ने चिकमंगलुर का नाम बदलकर चिकामंगलुरुहुवली का नाम बदलकर हुब्बाली और गुलबर्गाका नाम बदलकर कलबुर्गी करने के फैसले को भी मंजूरी दे दी।

ऐसे में जब कांग्रेस और अन्य दल अपनी-अपनी सुविधा के हिसाब से शहरों के नाम में समय-समय पर बदलाव करते रहे हैं तो फिर गुड़गांव, मेवात और इलाहाबाद शहर के नामों के बदले जाने पर इतना हंगामा क्यों? कहीं यह सब कुछ एक सोची समझी राजनीति के तहत तो नहीं किया जा रहा है। यह सोचना हम सबकी जिम्मेदारी है।



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